"अपनी औकात देखी है
राघव का जन्म एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था।खाने के लाले।रोज काम ढूंढते।काम मिल जाता तो घर मे चूल्हा जल जाता।ऐसे में गरीब मा बाप बेटे को स्कूल में दाखिला कैसे करा सकते थे।
लेकिन
सरकार चाहती थी सब साक्षर बने।बच्चे पढ़ाई से वंचित न रहे।और आंगन बाड़ी में कार्यरत लोगो की जिम्मेदारी थी कि बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराए।घर घर जाकर वे ऐसे बच्चों को ढूंढते जो स्कूल नही जा रहे थे। एक दिन एक आंगनवाड़ी वाली आकर राघव के माता पिता से बोली,"तुम्हारा बेटा स्कूल जाता है?"
"नही"
"इसे स्कूल में भर्ती करवा दो।"
"क्या करेगा स्कूल जाकर।मजदूरी करनी है।उसके लिए स्कूल जरूरी नही है।"
उसके काफी समझाने पर भी उसके माता पिता नही माने तब वह बोली थी,"स्कूल से किताबे मिलेगी।कपड़े जूते मिलेंगे और
"और क्या?"
"स्कूल में भोजन भी मिलेगा।"
"क्या?खाना। भी। मिलेगा?"
"हा
और उसके मा बाप ने सोचा बरसात हो जाये या अन्य किसी वजह से उन्हें मजदूरी नही मिलती तो उनके साथ बेटे को भी भूखा रहना पड़ता है।अगर स्कूल जाएगा तो खाने का जुगाड़ हो जायेगा।उसे तो भूखा नही रहना पड़ेगा।
और उन्होंने बेटे को स्कूल भेज दिया
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"घसीटा
"यह कैसा नाम है,"मास्टर रजिस्टर में नाम लिखने से पहले सोचने लगा और फिर बोला,"राघव
आज से तुम्हारा नाम राघव होगा।"
और वह घसीटा से राघव बन गया।राघव शुरू में स्कूल खाने के लालच में जाता था।उसका मन पढ़ने में नही था।लेकिन फिर वह पढ़ने में भी रुचि लेने लगा।और धीरे धीरे उसने दसवीं पास कर ली।और तभी एक दिन उसके पिता का अचानक देहांत हो गया।
पितां के गुजर जाने के बाद उस पर मा की जिम्मेदारी भी आ गयी।पढ़ाई के साथ साथ उसे कमाई भी करनी थी।गांव में ऐसा कोई काम तो था नही।मजदूरी कर लेता।थोड़ा बहुत उसकी माँ भी कमा लेती और उससे दोनो का काम चल जाता था।ऐसे ही जिंदगी घिसट रही थी और उसने जैसे तैसे ििनतर पास कर ली।
एक दिन उसकी माँ बीमार पड़ गयी।गांव में कोई अस्पताल तो था नही।एक वेधजी थे।उनसे दवा लेता रहा।जब कोई फर्क नही पड़ा तो वेधजी बोले,"माँ को शहर ले जाओ।"
और राघव माँ को लेकर दिल्ली आ गया।उसने दिल्लीमें एक बस्ती में किराए पर कमरा ले लिया।माँ को सरकारी अस्पताल में दिखाया।डॉक्टरों ने टी बी बता दी।इस बीमारी का इलाज लम्बा था।इलाज फ्री था।दवा के लिए पैसे खर्च नही करने थे।पर खुराक के लिए पैसे चाहिए थे।और उसने काम करने का फैसला किया।सोच विचार करके उसने ऑटो चलाने का निर्णय लिया।उसने ऑटो चलाना सिख लिया और वह किराए पर ऑटो चलाने लगा।उसने नाइट कालेज में बी ए में एड्मिसन भी ले लिया।
वह इतना कमा लेता था कि खर्चा चल जाये।मा के लिए वह फल दूध सब का इनतजाम करता था।दवा से मा की तबियत में सुधार भी आ रहा था।लेकिन मा कोरोना की लपेट में आ गयी।इलाज कराने के बाद भी उसे बचाया नही जा सका।
पहले पितां और अब मा वह अनाथ हो गया।और समय गुजरने के साथ उसने बी ए पास कर लिया।बी ए करने के बाद उसने ऑटो चलाना छोड़ दिया